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पवहारी बाबा

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9594

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यह कोई भी नहीं जानता था कि वे इतने लम्बे समय तक वहाँ क्या खाकर रहते हैं; इसीलिए लोग उन्हें 'पव-आहारी' (पवहारी) अर्थात् वायु-भक्षण करनेवाले बाबा कहने लगे।

यह कोई भी नहीं जानता था कि वे इतने लम्बे समय तक वहाँ क्या खाकर रहते हैं; इसीलिए लोग उन्हें 'पव-आहारी' (पवहारी) अर्थात् वायु-भक्षण करनेवाले बाबा कहने लगे।

लेखक इस परलोकगत सन्त के प्रति चिरकृतज्ञ तथा परम ऋणी है। लेखक ने जिन श्रेष्ठतम आचार्यों से प्रेम किया है तथा जिनकी सेवा की है, उनमें से वे एक हैं। उनकी पवित्र स्मृति में वह ये पंक्तियाँ, चाहे जितनी भी अयोग्य हों, समर्पित करता है।

यह पुस्तक मौलिक रूप में स्वामी विवेकानन्दजी द्वारा अंग्रेजी में लिखी गई थी - उसी का हिन्दी अनुवाद आज आपके हाथ में है। पवहारी बाबा के प्रति स्वामी जी की बड़ी श्रद्धा और निष्ठा थी। इन महात्मा का जीवन कितना उच्च तथा उनकी आध्यात्मिक साधनाएँ कितनी महान् थीं इसका संक्षिप्त विवरण हमें इस पुस्तक से प्राप्त होगा। हम कह सकते हैं कि उनके जीवन काल की समस्त घटनाएँ हमारे लिए स्कूर्तिदायी एवं पथप्रदर्शक हैं।

हमें विश्वास है कि इस पुस्तक से पाठकों को धार्मिक क्षेत्र में स्फूर्ति एवं प्रोत्साहन प्राप्त होगा।

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